( तर्ज - ऊँचा मकान तेरा ० )
पर्वा हमें न तनकी ,
जनकी कहाँ रहेगी ?
जो खुद न गर्ज जाने
दुसरोंकि क्या कहेगी || टेक ||
बस एक जानते है ,
उसकोहि मानते हैं ।
मरते न हम कभीभी ,
मट्टी मेरी बहेगी ।। १ ।।
आत्मा सदा अमर है ,
फिर क्यों धरेंगे डर है ?
अलमस्त रंगमे हम ,
ऊँची पुकार होगी ॥२ ॥
ना मंदिरोंसे पर्वा ,
ना मस्जिदोंसे फाटा ।
दोनोंमें एक हमको ,
फिर आँख क्या कहेगी ॥३ ॥
पर्वा अगर करो तो ,
सत्संग कर निहारो ।
तुकड्या कहे जगत्की ,
तब आस ना बढेगी ॥४ ॥
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